प्रकृतिवादी लेखक संघ की उत्तराखण्ड राज्य इकाई की स्थापना

दीपक मिश्रा 

*प्रकृतिवादी लेखक संघ की उत्तराखण्ड राज्य इकाई की स्थापना*

हरिद्वार। साहित्यकार, कवियत्री एवं शिक्षिका सुश्री मेनका त्रिपाठी जी के निवास पर प्रतिष्ठित कवि, फिल्मकार एवं उपन्यासकार श्री निलय उपाध्याय जी के सान्निध्य में सम्पन्न हुई एक विचार संगोष्ठी के दौरान प्रकृतिवादी लेखक संघ की उत्तराखण्ड ईकाई का गठन किया गया। इस पर अवसर चर्चा हेतु नगर के अनेक लेखक, साहित्यकार व कविगण उपस्थित रहे, जिनमें जिसमें- डा. मेनका त्रिपाठी के अलावा वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र हर्ष, वरिष्ठ पत्रकार लेखिका, अध्यात्मिक विचारक डा. राधिका नागरथ, चेतना पथ के संपादक अरुण कुमार पाठक, दीपशिखा साहित्यिक मंच की अध्यक्षा डा. मीरा भारद्वाज, प्रफुल्ल ध्यानी, ओजस्वी कवि अरविन्द दुबे तथा कवियत्री, लेखिका तथा प्रेरकवक्ता श्रीमती कंचन प्रभा गौतम तथा डा. निशा आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
भारत के साहित्य समृद्ध प्रदेश बिहार में जन्मे निलय उपाध्याय हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवियों‌ में से एक हैं। इनके कविता संग्रह ‘अकेला घर हुसैन का’, ‘कटौती’ और ‘जिबह वेला’ हैं। दो उपन्यास ‘अभियान’ और ‘वैतरनी’ प्रकाशित हो चुके हैं।‌ कुछ वर्ष पूर्व इन्होंने साइकिल से गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा की थी। वर्तमान में यह मुंबई में रहते हैं और फिल्म व्यवसाय में पटकथा लेखन के माध्यम से जुड़े हैं। ‘देवों‌ के देव महादेव’ धारावाहिक के साथ-साथ यह अनेक फिल्में भी लिख चुके हैं।‌ नाटक ‘पाॅपकार्न विथ परसाई’ इनकी प्रसिद्ध कृति है। ‘पहाड़’ इनका तीसरा उपन्यास है जो ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी के जीवन पर आधारित है।
संस्थापक निलय उपाध्याय ने सुश्री मेनका त्रिपाठी को संस्था की प्रदेश इकाई का संयोजक नियुक्त करते हुए कहा कि, “संस्था सृष्टि में सभी रूपों में उपस्थित प्रकृति के संरक्षण, उत्थान व प्रगति के लिये आलेखों के माध्यम से उत्तम विचारों के प्रचार-प्रसार तथा आत्मसात् करने व करवाने के लिये प्रतिबद्ध व कार्यरत रहेगी।” उन्होंने कहा कि, पर्यावरणीय व मानवीय दोनों प्रकार की प्रकृति को संभालने की जरूरत है। उन्होंने इस कार्य के लिये और भी उपाय खोजने को कहा। प्रफुल्ल ध्यानी ने वेद पुराणों की ऋचाओं‌ के माध्यम से तो, डा. मीरा भारद्वाज ने अपने अन्तर्मन के भावों से प्रकृति के रहस्यों‌ को उजागर किया।
अरुण कुमार पाठक ने कहा कि, “केदारनाथ, जोशीमठ, भूस्खलन या बाढ़ सरीखी आज तक जितनी भी आपदाओं को हमने प्रकृतिक आपदा का नाम दिया है, वास्तव में वे सब आपदाएँ मानव जनित ही हैं। उनके ज़िम्मेदार हम ही रहे हैं। इसलिये उनके निवारण के लिये हमें ही आगे आना होगा। श्रीमती कंचन प्रभा गौतम ने एक स्वरचित काव्य रचना के माध्यम से हिमालय के महत्व तथा उसकी वर्तमान दुर्दशा को उजागर किया। “वरिष्ठ पत्रकार बृजेन्द्र हर्ष ने कहा कि,”संस्था के संकल्प को परवान चढ़ाने के लिए संगठन के हर सदस्य को, सबसे पहले स्वयं को समझना होगा और हमें प्रकृति से जुड़कर ही इनके संरक्षण के लिए संकल्पबद्ध होना पड़ेगा।” साहित्यकार प्रफुल्ल ध्यानी ने कहा- “प्रत्येक मनुष्य को अपनी मूल प्रकृति के अनुसार त्यागपूर्वक जीवन निर्वहन करना चाहिए।”
प्रकृति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डा. निशा ने कहा कि, “प्रकृति के समस्त अंगों के साथ संतुलित जीवन वहाँ का असली सौंदर्य है, जहाँ विकास और संरक्षण का सामंजस्य है। इसी संतुलन में ही हमारे जीवन की सार्थकता और समृद्धि निहित है।” कवि अरविन्द दुबे ने प्रकृति की व्यथा को अपनी काव्य रचना में प्रस्तुत किया। संस्था की नवनियुक्त संयोजिका डा. मेनका त्रिपाठी ने कहा कि वह जल्दी ही औपचारिक प्रदेश कार्यकारिणी का गठन करेंगी।

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