दीपक मिश्रा
कर्तव्यशील व्यक्ति ही समाज मे सम्मान प्राप्त करता है। कर्तव्य मे कर्म एवं दान दोनो भावनाओं का सम्मिश्रण है। यह व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा, रूचि-अरूचि या बाहरी दबाव से सम्बंधित न होकर आन्तरिक नैतिक प्रेरणा से संम्भव होता है। गुरुकुल कांगडी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार के दयानंद स्टेडियम परिसर, शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग मे प्रशिक्षु अध्यापकों को कार्य क्षेत्र मे कर्तव्य पालन की उपयोगिता पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान सत्र मे एसोसिएट प्रोफेसर डॉ0 शिवकुमार चौहान ने कहॉ कि कर्तव्य व्यक्ति की नैतिक प्रतिब्द्वता को दर्शाता है। कार्य के प्रति समर्पण एवं उसे पूरा करने की तत्परता ही व्यक्ति को कर्तव्य की सक्रियता से जोडती है। डॉ0 शिवकुमार चौहान ने कहॉ कि व्यक्ति का कर्तव्य के प्रति जुडाव नैतिक एवं कानूनी दो प्रकार से हो सकता है। नैतिक कर्तव्य, व्यक्ति को मानवीय भावना, अन्तःकरण की प्रेरणा तथा उचित कार्य की प्रवृत्ति से जोडती है। सत्य बोलना, संतान का संरक्षण तथा सदव्यवहार इसके प्रमुख उदाहरण है। इसके विपरीत आचरण से व्यक्ति की अन्तः आत्मा उसे धिक्कारती है तथा समाज मे वह निदा का पात्र बनता है। कानूनी कर्तव्य के पालन मे व्यक्ति अनिच्छा, अरूचि तथा वाहय दबाव से स्वतंत्रता न होकर एन सभी कार्यो को करने को विवश होता है जिन्हे वह व्यक्तिगत जीवन मे करने से बचता है।
डॉ0 शिवकुमार चौहान ने प्रशिक्षु अध्यापकों को कहॉ कि उन्हे अपने कार्य स्थल पर नैतिक एवं कानूनी दोनो प्रकार के कर्तव्यों के पालन मे सामंजस्य बनाये रखना जरूरी होगा। वाहय दबाव मे आकर किया गया कार्य नैतिक कर्तव्यों मे बाधा उत्पन्न करके खुद के जीवन मे कलह की स्थिति पैदा कर सकता है। व्याख्यान सत्र मे एम0पी0एड0 तथा बी0पी0एड0 के प्रशिक्षु छात्र उपस्थित रहे।