मृद्भाण्ड कार्यशाला का उद्घाटन किया 

दीपक मिश्रा 

 

गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में आयोजित सात दिवसीय कार्यक्रम में आज दूसरे दिन मृद्भाण्ड कार्यशाला का उद्घाटन समविश्वविद्यालय के कुलपति महोदया प्रो० हेमलता जी के करकमलों द्वारा किया गया। शोधछात्र दीपक कुमार और पूजा के द्वारा पटका पहनाकर कुलपति महोदया का स्वागत किया गया। तत्पश्चात शोधछात्र दीपक कुमार ने कुलपति महोदया और उपस्थित छात्र छात्रों को खुदाई के विभिन्न पद्धतियों की ट्रेंच के माध्यम से जानकारी दी।

इस अवसर पर कुलपति महोदया हेमलता के. जी द्वारा बताया गया कि इस कार्यक्रम को विश्वविद्यालय में पहली बार आयोजित किया गया है। छात्राओं की संख्या एवं उनके बढ़ते हुए उत्साह को ध्यान में रखते हुए प्रो० प्रभात जी को आश्वासन दिया कि विभाग इस तरह के कार्यक्रम कराता रहे और विश्वविद्यालय प्रशासन हर सम्भव सहायता प्रदान करेगा। उन्होंने अयोजकों, सहभागियों एवं सभी छात्र-छात्राओं को शुभकामनाएं दी ।

विश्व धरोहर सप्ताह के मृद्भाण्ड कार्यशाला में मौजूद शोधछात्र गुरुदयाल ने उत्खनन प्रविधि एवं प्रलेखन कार्य के विषय में तथा ट्रेंच का लेआउट, सांस्कृतिक अनुक्रम एवं उत्खनन के संदर्भ में शोधछात्र विकास कुमार ने सर्वेक्षण के माध्यम से स्थल की पहचान करने और उत्खनन से जुड़े विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

विभाग प्रांगण में आयोजित कार्यशाला में शोधछात्रा पूजा ने जानकारी देते हुए बताया कि प्राचीन समय में मिट्टी के बर्तनों को बनाने की जो विधि थी उसमें जो सामग्री उपयोग होती थी, उसका उपयोग कैसे किया जाता था। जमालपुर के मिट्टी कारीगर राजू जी से बच्चों ने बर्तन बनाने की विधि को सीखा एवं उनसे बात करके छात्र छात्राएं उत्साहित हुए। प्राचीन भारत के मृद्भांडों को बनाने की विधि को संजोते हुए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया। नवपाषाण, ताम्र पाषाण एवं हड़प्पा से मिली पुरातात्विक साक्ष्य बच्चों को दिखाए गए, जिसकी पूरी जानकारी शोधछात्रों ने दी।

मृद्भाण्ड कार्यशाला के संयोजक डॉ० दिलीप कुशवाहा ने संबोधित करते हुए जानकारी दी कि इस कार्यशाला का उद्देश्य मृदभांड एवं सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण, संवर्धन और पूर्ण स्थापना करना है। उन्होंने बताया कि इतिहास को जानने के दो मुख्य स्रोत होते हैं- साहित्यिक स्रोत एवं पुरातात्विक स्रोत। मानव इतिहास का मुख्य हिस्सा पाषाण युगीन है जो की पुरातात्विक स्रोत पर निर्भर है।

कन्या गुरुकुल परिसर की प्रो० रेखा सिंह ने बच्चों को जानकारी देते हुए बताया की खुदाई में अवशेष पाए जाते हैं जो अधिक प्रामाणिक होते हैं, जबकि साहित्यिक स्रोतों की प्रमाणिकता में संदेह रहता है। प्रो० दीपा गुप्ता ने बताया कि जो क्षीर्ण अवस्था में

मिले साक्ष्य हैं उनसे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस जगह की संस्कृति कैसी रही होगी।

इस कार्यशाला में प्रो० प्रभात कुमार, प्रो० देवेंद्र कुमार गुप्ता, डॉ० हिमांशु पंडित, श्री मनोज कुमार, डॉ० प्राची, चंचल, आँचल, भानु प्रताप डंगवाल, सुनील कुमार के साथ- साथ स्नातक व स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं मानसी भार्गव, शालिनी राय, रुद्राक्षी त्रिपाठी, राहुल सिंह जयाला, मयंक सैनी, प्रांजल, अविराज, गौरव, नितेश रहे।

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